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जमुई

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जमुई


जमुई बिहार के जमुई जिले का मुख्यालय है। यह जैनों के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है... प्राचीन समय में इस जगह को जूम्भिकग्राम और जमबुबानी के नाम से जाना जाता था। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण रहा है। माना जाता है कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने उज्जिहवलिया नदी के तट पर स्थित जूम्भिकग्राम में दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था। इस जिले की स्थापना गुप्त, पाल और चन्देल शासकों ने की थी। जमुई का संबंध प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत से भी जोड़ा जाता है... यहाँ माँ कलिका मंदिर, मलयपुर, जमुई, जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर एवं जमुई रेलवे स्टेशन से सटा हुआ है जो आस पास के इलाके में बहुत ही भव्य एवं प्रसिद्ध है...दूर दूर से सैलानी इस मंदिर में श्रद्धा करने आते हैं... गुरूद्वारा पक्की संगत जमुई जिले के मोगहार स्थित गुरूद्वारा पक्की संगत प्राचीन गुरूद्वारों में से है। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां सिक्खों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर कुछ समय के लिए ठहरें थे। गुरुद्वारे में एक कमरा है। माना जाता है कि इस कमरे में रखे हुए तकिया और कोट को गुरु जी ने प्रयोग किया था। गुरुद्वारे के समीप पर ही एक पुराना किला भी है। मिन्टो टॉवर जमुई जिला मुख्यालय के पूर्व से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गिद्धौर में मिन्टो टॉवर है। यह टॉवर बिहार के प्रमुख पयर्टन स्थलों में से है। मिन्टो टॉवर का निर्माण महाराजा रामेश्‍वर प्रसाद सिंह ने करवाया था। यह टॉवर लॉर्ड मिन्टो, भारत के गर्वनर जर्नल और वाइसराय की याद में बनवाया गया था, जो 10 फ़रवरी 1960 ई॰ में यहां घूमने के लिए आए थे। काफी संख्या में पर्यटक यहां आना पसंद करते है। मिन्टो टॉवर के समीप ही एक मंदिर भी है। गिद्धौर में बना मिंटो टावर का निर्माण चंदेल वंश के अंतिम राजा प्रताप सिंह के पिता महाराजा चन्द्रचूड़ सिंह ने अंग्रेज शासक लार्ड मिंटो के सम्मान में करवाई थी। वर्ष 1907 में लार्ड मिंटो गिद्धौर आए थे। उस समय राजा ने गिद्धौर स्टेशन से मिंटो टावर तक लगभग दो कि॰मी॰ कालीन बिछवाई थी। शाही बग्गी पर सवार होकर राजा प्रताप सिंह अपने पिता महाराजा चन्द्रचूड़ सिंह के साथ लार्ड मिंटो की अगुवाई की और टावर तक आए थे। उसी दिन महराजा ने सवारी हेतु फोर्ड की नई कार मंगवाई थी। जिस पर सवार होकर टावर से राजमहल तक महाराज और लार्ड मिंटो आए थे। गिद्धौर दुर्गा मंदिर गिद्धौर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से दो ही पहचान है। एक यहां की पुरानी रियासत तथा दूसरा दुर्गापूजा और दोनों की एक लंबी परम्परा रही है। शैलवालाओं और झरनों से भरे वन प्रांतर के मध्य बसी थी गिद्धौर नगरी। जहां चार शताब्दी से भी अधिक वर्ष पूर्व तत्कालीन राजा ने अलीगढ़ से स्थापत्य से जुड़े राज मिस्त्री को बुलाकर गिद्धौर स्थित दुर्गा मंदिर का निर्माण कराया था। तब से जैनागमों में चर्चित पवित्र नदी उच्चवालिया (उलाय नाम से प्रसिद्ध) तथा नागिन नदी के संगम पर बने इस मंदिर में दुर्गा पूजा अर्चना होती आ रही है। गंगा और यमुना सरीखी इन दो पवित्र नदियों में सरस्वती स्वरुपनी दुधियाजोर मिश्रित होती है जिसे आज झाझा रेलवे के पूर्व सिग्नल के पास देखा जा सकता है। इस संगम में स्नान करने के उपरांत हरिवंश पुरान का श्रवण करने से निस्संतान दंपती को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के प्रारंभ होते ही सुदूर अंचल से ब्रह्मा मुहूर्त में इसी पवित्र नदी में स्नान कर नर-नारी दंडवत करते हुए इस मंदिर के द्वार पहुंचकर पूजा-अर्चना करते रहे हैं। चंदेल राजाओं के गिद्धौर राज की इस राजधानी को परसंडा के नाम से भी जाना जाता है। बिहार प्रांत के पूर्वांचल जैनागमों में आए वर्णन के अनुसार यह दुर्गा पूजा के लिए सर्व प्रतिष्ठित स्थल है। दशहरा के अवसर पर यहां के राज्याश्रद्ध मेला में कभी मल्ल युद्ध का अभ्यास, तीरंदाजी, कवि सम्मेलन, नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ करता था। मीना बाजार लगाए जाते थे। हाल के वर्षो में इसकी जगह सर्कस, थियेटर ने ले लिया है। राज्याश्रद्ध इस मेले को चंदेल वंश के उत्तराधिकारी प्रताप सिंह ने जनाश्रत घोषित कर दिया है। दशहरा के पुनीत अवसर पर अतीत को पुर्नजागृत करने के लिए गिद्धौरवासी व पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह ने गिद्धौर संस्थान गठित कर गिद्धौर सांस्कृतिक महोत्सव की रचना की थी। लेकिन उनके आकस्मिक निधन के बाद पुन: गिद्धौर सांस्कृतिक महोत्सव की परम्परा थम सी गई है। इस इलाके के हजारों लोग स्वस्थ सांस्कृतिक मनोरंजन से वंचित हो गए हैं। जैन मंदिर धर्मशाला जमुई के पश्चिम से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिंकदरा में जैन मंदिर और एक धर्मशाला स्थित है। इस धर्मशाला में कुल 65 कमरें है। मंदिर स्थित यह धर्मशाला जैन भक्तों को रहने की सुविधा उपलब्ध कराती है। यह धर्मशाला मंदिर के भीतर स्थित है। जैन मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है। काफी संख्या में लोग मंदिर में आते हैं। इसके अलावा यह स्थान भगवान महावीर के जन्म स्थान के रूप में भी जाना जाता है। चन्द्रशेखर संग्रहालय चन्द्रशेखर संग्रहालय बहुउद्देशीय संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1985 ई॰ में हुई थी। जमुई स्थित चन्द्रशेखर संग्रहालय की स्थापना श्री भुब्वनेशवरनाथ वर्मा की थी। पुरातात्विक वस्तुएं, टेरीकोटा सील और प्राचीन चट्टान आदि इस संग्रहालय में देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त, संग्रहालय में भगवान विष्णु, भगवान सूर्या, देवी उमा और दुर्गा की अनेक प्रतिमाएं देखी जा सकती है। यह संग्रहालय चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय के नाम से प्रसिद्ध है। यह संग्रहालय प्रत्येक दिन खुला रहता है। केवल सोमवार को अवकाश रहता है। खुलने का समय: सुबह 10 बजे से शाम 4.30 बजे तक काकन काकन जुमई के उत्तर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह धार्मिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि जैनों के नौवें तीर्थंकर सुविधिनाथ का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में भक्त यहां आते हैं। इसके अलावा यहां लोगों के लिए रहने की सुविधा भी प्रदान की गई है। प्रसिद्ध जैन मंदिर कुमार ग्राम प्राचीन देवी मंदिर के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि इंदापी जिसे इंद्रप्रस्थ के नाम से भी जाना जाता है, वह भी यहां घूमने के लिए आए थे। काली मंदिर काली मंदिर जुमई, जमुई रेलवे स्टेशन के सामने (मलयपुर) में स्थित है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है। प्रत्येक वर्ष दीपावली से छठ तक इस जगह पर बहुत ही प्रसिद्ध मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले को काली मेला के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर निर्माण का श्रेय मलयपुर निवासी अशोक सिंह को जाता है। उन्हीं के कठिन परिश्रम से जमुई काली मंदिर की सुन्दरता और रख-रखाव बरक़रार है। जमुई काली मंदिर जमुई ज़िले का गौरव है। धनेश्वर नाथ (महादेव सिमरिया) जिला मुख्यालय के सिकन्दरा-जमुई मुख्य मार्ग पथ पर बाबा धनेश्वर नाथ (महादेव सिमरिया) मंदिर स्थित है। बाबा धनेश्वर नाथ शिव मंदिर स्वयंभू शिवलिंग है। इसे बाबा वैद्यनाथ के उपलिंग के रूप में जाना जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार यह शिव मंदिर 400 दशक से भी अधिक पुराना है। जहां बिहार ही नहीं बरन दूसरे राज्य जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि से श्रद्धालु नर-नारी पहुंचते हैं। पूरे वर्ष इस मंदिर में पूजन दर्शन, उपनयन, मुंडन आदि अनुष्ठान करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। विशेषताएं-इस मंदिर के चारों और शिवगंगा बनी हुई है। मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा की ओर है। मंदिर परिसर में सात मंदिर है जिसमें भगवान शंकर का मंदिर गर्भगृह में अवस्थित है। ऐसी मान्यता है कि गिद्धौर वंश के तत्कालीन महाराजा पूरनमल सिंह को स्वप्न आया कि महादेव सिमरिया स्थित शिवडीह में शिवलिंग प्रकट हुआ है। जिसकी चर्चा दूर-दूर तक फैल रही है। तब महाराजा ने अपने दल-बल के साथ उक्त स्थान पर आकर विधिवत तरीके से पूजा-अर्चना कर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की। उस के बाद से यह शिवमंदिर बाबा धनेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा और पुजारियों के आजीविका के लिए महाराजा द्वारा जमीन उपलब्ध कराए गए। गिद्धेश्वर स्थान जिला मुख्यालय से लगभग १५ किलो मीटर दूर खैरा प्रखंड में गिद्धेश्वर स्थान है। कहा जाता है कि राम व रावण की लड़ाई में जब रावण-सीता का अपहरण कर लंका जा रहा था तो यही वह स्थान है जब गिद्धराज जटायु ने रावण से युद्ध किया था। आज भी यह स्थान क्षेत्र के लोगों के लिए दर्शनीय केन्द्र है। यहाँ गिद्धेश्वर महादेव मंदिर भी है जो यहाँ के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। प्रचलित कथा के अनुसार यहां के पर्वत पर ही जटायु ने रावण से उस वक्त युद्ध किया था जब माता सीता का अपहरण कर ले जा रहा था। गुस्से में रावण ने जटायु का पंख काट डाला था और यहीं पर गिरकर मौक्ष की प्राप्ति किया था। चुकि जटायू गिद्ध था इसलिए इस स्थान का नाम गिद्धेश्वर और यहां निर्मित मंदिर का नाम गिद्धेश्वर मंदिर पड़ा। गिद्धेश्वर मंदिर का निर्माण खैरा स्टेट के तत्कालीन तहसीलदार लाला हरिनंदन प्रसाद द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व किया गया है। प्रकृति के खुबसूरत वादियों में बसे गिद्धेश्वर स्थान और इसके आसपास विशाल भू-भाग को आदर्श पिकनिक स्थल के रूप में विकसित है। यहां हरे-भरे पेड़-पौधों से अच्छादित पर्वत, बीच में भव्य मंदिर, आगे शिवगंग (तालाब) तथा किउल नदी की कलकल-छलछल करती जलधारा बरबस ही श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैलानियों को भी आकर्षित करता है। पत्नेश्वर स्थान किउल नदी तट पर पत्‍‌नेश्वर पहाड़ पर अवस्थित पत्‍‌नेश्वर नाथ मंदिर राजकाल से ही लोगों की आस्था का केन्द्र रहा है। धर्मावलंबी जनों की मानें तो यहां की पूजा करने से असाध्य रोग दूर हो जाता है। इस मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उक्त स्थल पर स्वयं शिवलिंग अवतरित हुआ है। शिवलिंग के आसपास मंदिर का निर्माण किया गया जहां जमुई के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। पुजारियों ने बताया कि बनैली राज स्टेट द्वारा उक्त मंदिर और आसपास का परिसर ब्राह्माणों को पूजन के लिए दिया गया। शुरुआती दौर में यहां आबादी नहीं के बराबर थी तब यहां एक साधु महात्मा आए थे। उड़ीया बाबा के नाम से मशहूर उक्त महात्मा काफी दिनों तक पत्‍‌नेश्वर पहाड़ पर रहे। उन्होंने बताया कि उन्हें गलित कुष्ठ था और देवघर बाबाधाम मंदिर में पूजा के दौरान उन्हें पत्‍‌नेश्वर में पूजा करने का स्वप्न हुआ। वे स्वयं पत्‍‌नेश्वर में पूजा के बाद स्वस्थ हुए और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने जंगल पहाड़ के स्थल पर किउल नदी में हर रोज स्नान कर पूजा से कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से मुक्ति का मार्ग बताया था। बदलते वक्त के साथ यहां अब भव्य मंदिर बन गया है। हर साल सावन माह में यहां भक्त ही भगवान की परीक्षा लेते हैं। इस विशेष पूजन में छोटे से शिवलिंग को चारो ओर से घेरकर कई मन दूध तथा गंगा जल से अभिषेक कराया जाता है। इस पूजन में लगातार अभिषेक के बावजूद शिवलिंग को पूरी तरह से दूध अथवा जल में डुबाना मुश्किल होता है। इस आयोजन के दौरान भारी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। बदलते वक्त के साथ अब जमुई शहर में प्रवेश के साथ ही पत्‍‌नेश्वर पहाड़, किउल नदी के बीच पत्‍‌नेश्वर धाम में मंदिर का मनोहारी दृश्य लोगों को बरबस ही आकर्षित कर रहा है। पूरे साल यहां सैकड़ों की संख्या में शादियां और पूजा-पाठ का कार्यक्रम चलता रहता है। माँ नेतुला मंदिर जमुई मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर सिकंदरा प्रखंड के कुमार गाँव के समीप श्मशान भूमि स्थित माँ नेतुला मंदिर प्राचीन काल से ही हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। हजारों वर्षो पूर्व से ही यहां नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में माँ नेतुला की पूजा होती आ रही है। माँ नेतुला मंदिर का इतिहास: जैन धर्म की पुस्तक कल्पसूत्र के अनुसार जैन धर्म के 24 वें र्तीथकर भगवान महावीर ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए घर का त्याग किया था तो कुण्डलपुर से निकल कर उन्होंने पहला रात्रि विश्रम कुमार गाँव में ही माँ नेतुना मंदिर के समीप एक वट वृक्ष के नीचे किया था। लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व घटी इस घटना और कल्पसूत्र में वर्णित माँ नेतुला की पूजा व बली प्रथा का वर्णन इस मंदिर के पौराणिक काल के होने की पुष्टि करती है। इस प्रकार हजारों वर्षो की गौरव गाथा को अपने में समेटे माँ नुतुला आज भी भक्तों की मनोकामना पूरी कर रही है। खैरा का दुर्गा खैरा का दुर्गा मंदिर न केवल ऐतिहासिक है बल्कि इसकी पौराणिक महत्ता भी है। यहां के दुर्गा मंदिर और दुर्गा पूजा से खैरा प्रखंड के अलावा जिले व अन्य जिलों के लाखों लोगों की धार्मिक आस्था और मान्यता जुड़ी है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा के अवसर पर लाखों लोग यहां आकर दंडवत देते हैं और भक्तिभाव से पूजा अर्चना करते हैं। दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां तीन दिवसीय मेला भी लगता है। 200 वर्ष पुराना है मंदिर खैरा का दुर्गा मंदिर 200 वर्षो से अधिक पुराना है। इसका निर्माण स्व. राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह के पुत्र स्व॰ गुरुप्रसाद सिंह द्वारा कराया गया था। दुर्गा पूजा के अवसर पर हजारों लोग मध्य रात्रि से ही रानी तालाब में स्नान कर माँ दुर्गा को दंडवत देती है। यहाँ मन्नतें पूरी होती है खैरा के दुर्गा मंदिर के प्रति आस्था रखने वाले और भक्तिभाव से पूजन करने वालों की मन्नतें पूरी होती हैं। यही कारण है कि लाखों लोग यहां पूजा करने आते हैं। यहां अष्टमी में मध्यरात्रि से बलि प्रथा की प्रचलन है जहां हजारों की संख्याओं में पशुओं की बलि दी जाती है। यहां के मूर्तिकार और पुजारी परंपरागत हैं।

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जमुई बिहार के जमुई जिले का मुख्यालय है। यह जैनों के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है... प्राचीन समय में इस जगह को जूम्भिकग्राम और जमबुबानी के नाम से जाना जाता था। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण रहा है। माना जाता है कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने उज्जिहवलिया नदी के तट पर स्थित जूम्भिकग्राम में दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था। इस जिले की स्थापना गुप्त, पाल और चन्देल शासकों ने की थी। जमुई का संबंध प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत से भी जोड़ा जाता है... यहाँ माँ कलिका मंदिर, मलयपुर, जमुई, जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर एवं जमुई रेलवे स्टेशन से सटा हुआ है जो आस पास के इलाके में बहुत ही भव्य एवं प्रसिद्ध है...दूर दूर से सैलानी इस मंदिर में श्रद्धा करने आते हैं.

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